Tuesday , March 21 2023

Nandoiji Nahi Landoiji

“आपकी चूत पर उगी काली लम्बी घनी रेशमी झांटें देखी

इन्हें काटियेगा नहीं चूत बे-परदा हो जायेगी !”

… प्रेम गुरु की कलम से

मैंने लोगों से सुना था कि किसी लड़की या औरत की खूबसूरती उसके उरोजों और नितम्बों से जानी जा सकती है। पर गुरूजी तो कुछ और ही फरमाते हैं। वो कहते हैं “चूत की सुन्दरता उसकी चौड़ाई से, गांड की सुन्दरता उसकी गहराई से और लंड की सुन्दरता उसकी लम्बाई से जानी जाती है। एक बार मैंने विशेष प्रवचन में गुरूजी से पूछा था कि चूत तो दो अंगुल की सुन्दर मानी जाती है तो फिर चूत की चौड़ाई से क्या अभिप्राय है तो गुरूजी ने डांटते हुए कहा था, “अरे भोले इसके लिए दोनों अंगुलियों को आड़ी नहीं सीधी यानि कि लम्बवत देखा जाता है और ये अंगुलियों जैसी, जितनी लम्बी होगी, उतनी ही सुन्दर होगी। इसीलिए चूत दो अंगुल की सुन्दर मानी जाती है। मैं जिस चौड़ाई की बात कर रहा हूँ वो चूत के नीचे दोनों जाँघों की चौड़ाई की बात है.”

गुरूजी की बातें सब के समझ में इतनी जल्दी नहीं आती। खैर अगर ऐसी चूत और गांड की बात की जाए तो मधु से भी ज्यादा सुन्दर तो सुधा है। सुधा मेरी सलहज है। अरे भई मेरी पत्नी मधु के भैय्या की प्यारी पत्नी। वो पंजाब से है ना। उन्होंने रमेश से प्रेम विवाह किया है। उम्र ३६ साल, रंग गोरा, ३८-२८-३६ ।

आप सोच रहे होंगे नितम्बों में २” की कंजूसी क्यों? पूरे ३८’ क्यों नहीं ? इसका कारण साफ़ है वो बेचारी गांड मरवाने के लिए तरसती रही है। आप तो जानते हैं गांड मरवाने से नितम्बों का आकार और सुन्दरता बढ़ती है। रमेश का जब से एक्सीडेंट हुआ है और सेक्स-क्षमता कुछ कम हुई है, वो बेचारी तो लंड के लिए तरस ही रही थी। वैसे भी रमेश को गांड मारना बिल्कुल पसंद नहीं है।

गुरूजी कहते हैं जिस आदमी ने अपनी खूबसूरत पत्नी की गांड नहीं मारी समझो वो जीया ही नहीं। उसका ये जन्म तो व्यर्थ ही गया। ऐसे ही आदमियों के लिए शायद ये गाली बनी है ‘साला चूतिया !’

सुधा मुझे नन्दोईजी कहकर बुलाती थी। लगता था जैसे उसके मुंह से लन्दोईजी ही निकल रहा हो। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया पर जब भी मैं अकेला होता तो पता नहीं वो जानबूझ कर ऐसा बोलती थी या उसकी बोली ही ऐसी थी मैंने गौर नहीं किया।

एक बार जब मैं और मधु उनके यहाँ गए हुए थे मैंने बातों ही बातों में उसे मज़ाक में कह दिया,“भाभी आप मुझे नन्दोईजी मत बुलाया करो !”

“क्यों क्या आपको लन्दोईजी कहना अच्छा नहीं लगता ?” उसके चेहरे पर कोई ऐसा भाव नहीं था जिससे मैं समझ सकता कि उसके मन में क्या है। यही तो कुदरत ने इन औरतों को ख़ास अदा दी है।

“नहीं ऐसी बात नहीं है, दरअसल मैं आप से छोटा हूँ और आप मुझे जी लगाकर बुलाती है तो मुझे लगता है कि मैं कोई ६० साल का बूढा हूँ। ” मैंने हंसते हुए कहा कहा।

“तो फिर कैसे … किस नाम से बुलाऊं लन्दोईजी ?”

“आप मुझे प्रेम ही बुला लिया करो !”

“ठीक है प्रेम प्यारे जी !” सुधा ने हंसते हुए कहा।

जिस अंदाज में उसने कहा था उस फिकरे का मतलब तो मैं पिछले चार पांच महीनों से सोचता ही रहा था। अब भी कभी कभी मजाक में वो लंदोईजी कह ही देती है पर सबके सामने नहीं अकेले में.

बात कोई मेरी शादी के डेढ़ दो साल के बाद की है। इतने दिनों तक तो मैं मधु की चूत पर ही मोर (लट्टू) बना रहा पर जब उसकी चूत का छेद कुछ चौड़ा हो गया तो मेरा ध्यान उसकी नाजुक कोरी नरम मुलायम गांड पर गया। वो पट्ठी गांड के नाम से ही बिदक गई। उसने अपनी कॉलेज की किसी सहेली से सुना था कि गांड मरवाने में बहुत दर्द होता है और उसकी सहेली की तो पहली ही रात में उसके पति ने इतनी जोर से गांड मारी थी कि वो खून-ओ-खून हो गई थी और डॉक्टर बुलाने की नौबत आ गई थी।

अब भला वो मुझसे इतनी जल्दी गांड कैसे मरवाती। मुझे उसे गांड मरवाने के लिए तैयार करने में पूरे ३ साल लग गए। खैर ये किस्सा अभी नहीं, बाद में अभी तो सिर्फ सुधा की बात ही करेंगे।

कहते है जहां चाह वहाँ राह। लंड और पानी अपना रास्ता खुद बना लेते हैं। मधु को पहली डिलिवरी होने वाली थी। कभी भी हॉस्पिटल ले जाना पड़ सकता था। डॉक्टरों ने चुदाई के लिए मना कर दिया था और वो गांड तो वैसे भी नहीं मारने देती थी। घर पर देखभाल के लिए सुधा (मेरी सलहज) आई हुई थी।

अक्टूबर का महीना चल रहा था। गुलाबी ठण्ड शुरू हो चुकी थी और मैं अपने लंड को हाथ में लिए मुठ मारने को मजबूर था। हमारे घर में गेस्ट-रूम के साथ लगता एक कोमन बाथरूम है। एक दिन जब मैं उस बाथरूम में मुठ मार रहा था तो मैं जोर जोर से सीत्कार कर रहा था। ‘हाईई… शहद रानीई… तुम ही अपनी चूत दे दो ! क्या अचार डालोगी हाईई … ! चूत नहीं तो गांड ही दे दो …!” अचानक मुझे लगा कि कोई चाबी-छिद्र से देख रहा है। मैं झड़ तो गया पर मैंने सोचा कौन हो सकता है। मधु तो अपने कमरे में है फिर ….। नौकरानी है या कहीं मेरी शहद रानी (सुधा) तो नहीं थी। सुधा शहद की तरह मीठी है मैं उसे शहद रानी ही कह कर बुलाता हूँ।

जब मैं बाहर निकला तो सुधा तो मधु के पास बैठी गप्प लगा रही थी। नौकरानी अभी नहीं आई थी। मैं समझ गया ये जरूर सुधा ही थी। जैसे कि आप तो जानते ही हैं कि मैं एक नंबर का चुद्दकड़ हूँ पर मेरी पत्नी और ससुराल वालों के सामने मेरी छवि एकदम पत्नी भक्त और शरीफ आदमी की है। मधु तो मुझे निरा मिट्ठू ही समझती है। हे भगवान् सुधा ने क्या समझा होगा। उसके बाद तो दिन भर मैं उससे नजरें ही नहीं मिला सका।

संयोग से दो तीन दिनों बाद ही करवा-चोथ का व्रत था। मधु की हालत ऐसी नहीं थी कि वो व्रत रख सकती थी। मैंने उसकी जगह व्रत रख लिया। सुधा का भी व्रत था। इस व्रत में दिन भर भूखा रहना पड़ता है। चाँद को देखकर ही अपना व्रत तोड़ते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ उत्तरी भारत में इस व्रत का बड़ा महत्व है। ख़ासकर राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में तो औरतें दिन में पानी तक नहीं पीती।

मेरा दोस्त गोटी (गुरमीत सिंह) बताता है कि उसकी पत्नी तो बिना लंड चूसे और चूत चुसवाये अपना व्रत तोड़ती ही नहीं है। ऐसी मान्यता है कि करवा का व्रत रखने से और लंड का पानी पीने से पहला बच्चा लड़का ही पैदा होता है। पता नहीं कहाँ तक सच है पर जिस हिसाब से पंजाब और हरियाणा में लड़के ज्यादा पैदा होते है इस बात में दम जरूर नजर आता है। अगले प्रवचन में गुरूजी से ये बात जरूर पूछूँगा।

एक खास बात तो बताना ही भूल गया। मधु भले ही उन दिनों गांड न मारने देती हो पर लंड चूसने में कोई कोताही नहीं करती थी। और मेरा वीर्य तो जैसे उसके लिए अमृत है। वो कहती है कि पति का वीर्य पीने से उनकी उम्र बढ़ती है और उसे शहद के साथ चाटने या पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। वैसे तो ये गोली भी उसे मैंने ही पिलाई थी। पर इसी लिए तो मैं उसका मिट्ठू बना हुआ हूँ। करवाचोथ की रात चाँद देखने के बाद वो मेरा लंड चूसती है और पूरा पानी पीकर ही अपना व्रत तोड़ती है। मैं अपना व्रत उसका मधु रस (चूत रस) पीकर तोड़ता हूँ। पर मैं आज सोच रहा था कि आज तो मुझे सादा पानी पीकर और मधु को दवाई लेकर ही अपने व्रत तोड़ने पड़ेंगे।

ये कार्तिक माह का चाँद भी साला (बच्चो का मामा मेरा साला ही तो हुआ ना) रात को देर से ही उगता है बेचारी औरतों को सताने में पता नहीं इसको क्या मजा आता है। यार कम से कम हम जैसों के लिए तो पहले उग जाया करो। खैर कोई रात के ९.३० या १० बजे के आस-पास मैं छत पर चाँद देखने गया। पूर्व दिशा में चाँद ने अपनी लाली कब की बिखेरनी शुरू कर दी थी नीचे पेड़ पोधों और मकानों के कारण पता ही नहीं लगा। मैं जल्दी से सीढ़ियों से नीचे आया। मधु तो ऊपर जा नहीं सकती थी सुधा एक थाली में कुछ फूल, रोली, करवा (मिटटी का बना छोटा सा लोटा), चावल, शहद, गुड़, मिठाई आदि रख कर मेरे साथ ऊपर आ गई। हमारे घर की छत पर एक छोटा सा स्टोर बना है उसके पीछे जाकर चाँद देखा जा सकता था। हम दोनों उसके पीछे चले गए। अगर कोई सीढ़ियों से आ भी जाए तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता। सुधा ने छलनी के अन्दर से चाँद को देखकर उसे करवे से पानी अर्पित किया और फिर खड़ी खड़ी अपनी जगह पर दो बार घूम गई। इस दौरान उसका पैर थोड़ा सा डगमगाया और उसके नितम्ब मेरे पाजामे में खड़े ७” के लंड से टकरा गए। मैंने अन्दर चड्डी नहीं पहनी थी। उसने एक बार मेरी ओर देखा पर बोली कुछ नहीं। उसने चाँद के आगे अपनी मन्नत मांगनी शुरू की :

“हे चाँद देवता मेरे पति की उम्र लम्बी हो उनका स्वास्थ्य ठीक रहे…। ”

फिर थोड़ी धीमी आवाज में आगे बोली “और उनका वो सदा खड़ा और रस से भरा रहे !”

‘वो’ का नाम सुनकर मैं चोंका। मैंने जानता था ‘वो’ क्या होता है पर मैंने सुधा से पूछ ही लिया “भाभी ‘वो’ क्या हुआ ?”

“धत् …” वो इतना जोर से शरमाई जैसे १६ साल की नव विवाहिता हो।

“प्लीज बताओ ना भाभी ‘वो’ क्या ?”

“नहीं मुझे शर्म आती है !”

“प्लीज भाभी बताओ ना !”

“क्या मधु ने नहीं बताया ?”

“नहीं तो !” मैं साफ़ झूठ बोल गया।

“इतने भोले तो आप और मधु नहीं लगते ?”

“सच भाभी वो तो वो तो … मेरा मतलब है …” मेरा तो गला ही सूखने लगा और मेरा लंड तो पहले से ही १२० डिग्री पर खड़ा था पत्थर की तरह कड़ा हो गया।

“मैं सब जानती हूँ मेरे लन्दोईजी … मुझे इतनी भोली भी मत समझो !” और उसने मेरे खड़े लंड पर एक प्यारी सी चपत लगा दी। “ हाय राम ये तो बड़ा दुष्ट है !” वो हंसते हुए बोली।

अब बाकी क्या बचा रह गया था। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया। वो भी मुझ से लिपट गई। मैंने अपने जलते हुए होंठ उसके होंठों पर रख दिए। उफ्फ्फ …। गुलाब की पंखुड़ियों जैसे नरम मुलायम होंठ। पता नहीं मैं कितनी देर उनका रस चूसता रहा। सुधा ने पजामे के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़ रखा था और धीरे धीरे सहला रही थी। मैंने भी एक हाथ से उसकी साड़ी के ऊपर से ही उसकी चूत सहलानी शुरू कर दी, शायद उसने भी पेंटी नहीं पहनी थी। उसकी झांटों को मैं अच्छी तरह महसूस कर रहा था।

कोई ५ मिनट के बाद एक झटके के साथ वो अपने घुटनों के बल बैठ गई और मेरे पजामे का नाड़ा खोल कर मेरे पप्पू को बाहर निकाल लिया। मेरा लंड तो पिछले २ महीनों से प्यासा था। उसने बिना कोई देरी किये मेरा लंड एक ही झटके में अपने मुंह में ऐसे ले लिया जैसे कोई बिल्ली किसी मुर्गे की गर्दन पकड़ लेती है। मैं उसका सिर सहला रहा था। पता नहीं वो दिन भर की प्यासी थी या कई बरसों की।

उसकी चूसने की लज्जत से मैं तो निहाल ही हो गया। क्या कमाल का लंड चूसती है। हालांकि मधु को मैंने लंड चूसने की पूरी ट्रेनिंग दी है पर सुधा जिस तरीके से मेरा लंड चूस रही थी मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि अगर लंड चुसाई का कोई मुकाबला करवा लिया जाए तो सुधा अव्वल नंबर आएगी।

वो कभी मेरे लंड को पूरा मुंह में ले लेती कभी बाहर निकाल कर चाटती कभी सुपाड़े को ही मुंह में लेकर चूसती कभी उस पर अपने दांत से हौले से काट लेती। एक दो बार उसने मेरे दोनों चीकुओं (अण्डों) को भी मुंह में लेकर चूसा।

मैं तो बस आह्ह … ओईई …। ओह्ह … या …। ही करता जा रहा था। कोई ७-८ मिनट हो गए थे। मैंने उसका सिर पकड़ रखा था और उसका मुंह ऐसे चोद रहा था जैसे वो कोई चूत ही हो। वो तो मस्त हुई जोर जोर से चूसे जा रही थी। अब मुझे लगाने लगा कि मैं झड़ने के करीब हूँ तो मैंने उसे इशारा किया मैं जाने वाला हूँ तो उसने भी इशारे से कहा “कोई बात नहीं !”

मैंने उसका सिर जोर से पकड़ लिया और अपने लंड को उसके मुंह में आगे पीछे करने लगा जैसे उसका मुंह न होकर चूत या गांड हो। और फिर एक दो तीन चार पांच ….। कितनी ही पिचकारियाँ मेरे लंड ने दनादन छोड़ दी। सुधा तो जैसे निहाल ही हो गई उस अमृत को पी कर। उसका व्रत टूट गया था। उसने एक चटखारा लेकर कहा “वह मजा आ गया मेरे लन्दोईजी !”

“आपका व्रत तो टूट गया पर मेरा कैसे टूटेगा ?”

“नहीं..। अभी नहीं … बाद में… ”

पर मैं कहाँ मानने वाला था। मैंने एक झटके में उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर कर दिया। वाह …। चाँद की दुधिया रोशनी में उसकी काले काले घुंघराले झांटों के झुरमुट से ढकी मखमली चूत देखने लायक थी। हालांकि उसकी चूत पर बहुत सारे झांट थे लम्बे लम्बे पर उसमे छुपी हुई मोटे मोटे होंठों वाली चूत साफ़ देखी जा सकती थी। जैसे किसी गुलदस्ते में सजा हुआ एक खिला गुलाब का फूल हो एकदम सुर्ख लाल। उसकी चूत पर उगे लम्बे लम्बे झांट देख कर मुझे पाकीज़ा फिल्म का वो डायलोग याद आ गया :

“आपकी चूत पर उगी काली लम्बी घनी रेशमी झांटें देखी

इन्हें काटियेगा नहीं, चूत बे-परदा हो जायेगी ”

मैंने तड़ से एक चुम्बन उस पर ले लिया और उसके होंठ अपने मुंह में लेकर चूमने लगा। अन्दर वाले होंठ तितली के पंखों की तरह कोई दो ढाई इंच लम्बे तो जरूर होंगे। तोते की चोंच की तरह बने बीच के होंठ बहुत बड़ी चुद्दकड़ औरतों के होते है। मुझे लगा सुधा भी एक नंबर की चुद्दकड़ है। साले रमेश (मेरा साला) ने उसे ढंग से चोदा हो या नहीं पर चूत की फांकों को कमाल का चूसा होगा तभी तो इतनी बड़ी हो गई हैं।

“बस अब चलो बाकी बाद में नहीं तो मधु तुम्हारी जान निकाल देगी मेरे प्यारे नन्दोईजी अ…अरे नहीं लण्डोईजी …!” उसने हंसते हुए कहा। मैं मन मार कर प्यासा ही बिना व्रत तोड़े नीचे आ गया।

नीचे मधु मेरा इंतजार ही कर रही थी। सुधा रसोई में खाना लेने चली गई थी। जानबूझ कर हमें अकेला छोड़ कर। मैं किसी प्यासे भंवरे की तरह मधु से लिपट गया। मुझे पता था वो मुझे चूत तो हरगिज नहीं चूसने देगी। और इस हालत में मेरा लंड वो कैसे चूसती। उसने एक चुम्बन पजामे के ऊपर से जरूर ले लिया। मुझे तो डर लगने लगा कि ऐसी हालत में तो मेरा लंड कुतुबमीनार बन जाता है आज खड़ा नहीं हुआ कहीं मधु को कोई शक तो नहीं हो जाएगा।

पर वो कुछ नहीं बोली केवल मन ही मन चाँद देवता से मन्नत मांग रही थी “मेरे पति की उम्र लम्बी हो। उनका स्वास्थ्य ठीक रहे और उनका ‘वो ’ सदा खड़ा और रस से भरा रहे !”

मैं मुस्कुराए बिना नहीं रह सका मैंने उसके गालों पर एक चुम्बन ले लिया और उसने भी हौले से मुझे चूम लिया। फिर मैंने करवे के पानी में शहद मिलाया और एक घूँट पानी उसे पिलाया और बाकी का मैं पी गया। उसका व्रत टूट गया मेरा तो पहले ही टूट चुका था।

दूसरे दिन मधु को हॉस्पिटल भरती करवाना पड़ ही गया। हॉस्पिटल में पहले से ही सारी बात कर रखी थी। डॉक्टर ने बताया कि आज रात में डिलिवरी हो सकती है। जब मैंने रात में उसके पास रहने की बात कही तो डॉक्टर ने बताया कि रात में किसी के यहाँ रुकने और सोने की कोई जरुरत नहीं है आप चिंता नहीं करें। रात में इनके पास दो नर्सें सारी रात रहेंगी। कोई जरुरत हुई तो हम देख लेंगे। अन्दर से मैं भी तो यही चाहता था।

मैं और सुधा दोनों कार से घर वापस आ गए। जब हम घर पहुंचे तो रात के कोई ११.०० बज चुके थे। रास्ते में सिवा एक चुम्बन के उसने कुछ नहीं करने दिया। इन औरतों को पता नहीं मर्दों को सताने में क्या मजा आता है। बेड रूम के बाहर तो साली पुट्ठे पर हाथ ही नहीं धरने देती। खाना हमने एक होटल में ही खा लिया था वैसे भी इस खाने में हमें कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। हम तो असली खाना खाने के लिए बेकरार थे। आग दोनों तरफ लगी थी ना।

घर पहुंचते ही सुधा बाथरूम में घुस गई और मैं बेडरूम में बैठा उसका इंतजार कर रहा था। मैंने अपना पजामा खोल कर नीचे सरका दिया था अपना ७” का लंड हाथ में पकड़े बैठा उसे समझा रहा था। कोई आध-पौन घंटे के बाद एक झीनी सी नाइटी पहने सुधा बाथरूम से निकली। जैसे कोई मॉडल रैंप पर कैट-वाक करती है। कूल्हे मटकती हुए वो मेरे सामने खड़ी हो गई।

उफ़ … क्या क़यामत का बदन था गोरा रंग गीले बाल थरथराते हुए होंठ। मोटे मोटे स्तन, पतली सी कमर और मोटे मोटे गोल नितम्ब। बिलकुल तनुश्री दत्ता जैसे। काली झीनी सी नाइटी में झांकती मखमली जाँघों के बीच फंसी उसकी चूत देख कर मैं तो मंत्रमुग्ध सा उसे देखता ही रह गया। मेरे तो होश-ओ-हवास ही जैसे गुम हो गए।

“कहाँ खो गए मेरे लन्दोईजी ?”

मैंने एक ही झटके में उसे बाहों में भरकर बेड पर पटक दिया और तड़ा तड़ एक साथ कई चुम्बन उसके होंठों और गालों पर ले लिए। वो नीचे पड़ी मेरे होंठों को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी। मैं नाइटी के ऊपर से ही उसकी चूत के ऊपर हाथ फिराने लगा।

“ओह ! प्रेम थोड़ा ठहरो अपने कपड़े तो उतार लो !” सुधा बोली।

“आँ हाँ !” मैंने अपनी टांगों में फंसे पजामे को दूर फेंक कर कुरता और बनियान भी उतार दी। और सुधा की नाइटी भी एक ही झटके में निकाल बाहर की। अब बेड पर हम दोनों मादरजात नंगे थे। उसका गोरा बदन ट्यूब लाइट की रोशनी में चमक रहा था। मैंने देखा उसकी चूत पर झांटों का नाम-ओ-निशाँ भी नहीं था। अब मैं समझा उसको बाथरूम में इतनी देर क्यों लगी थी। साली झांट काट कर पूरी तैयारी के साथ आई है। झांट काटने के बाद उसकी चूत तो एक दम गोरी चट्ट लग रही थी। हाँ उसकी दरार जरूर काली थी। ज्यादा चूत मरवाने या फिर ज्यादा चुसवाने से ऐसा होता है। और सुधा तो इन दोनों ही बातों में माहिर लगती थी।

ऐसी औरतों की चुदाई से पहले चूत या लंड चुसवाने की कोई जरुरत नहीं होती सीधी किल्ली ठोक देनी चाहिए। मेरा भी पिछले दो महीने से लंड किसी चूत या गांड के लिए तरस रहा था। और जैसा कि मुझे बाद में सुधा ने ही बताया था कि जयपुर से यहाँ आते समय रात को सिर्फ एक बार ही रमेश ने उसे चोदा था और वो भी बस कोई ४-५ मिनट। वो तो जैसे लंड के लिए तरस ही रही थी। ऐसी हालत में कौन चूमा-चाटी में वक्त बर्बाद करना चाहेगा। मैंने अपना लंड उसकी चूत के मुहाने पर रख कर एक जोर का झटका मारा। गच्च की आवाज के साथ मेरा आधा लंड उसकी नरम मक्खन सी चूत में घुस गया। दो तीन धक्कों में ही मेरा पूरा लंड जड़ तक उसकी चूत में समां गया। पूरा लंड अन्दर जाते ही उसने भी नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिए जैसे वो भी सदियों की प्यासी हो।

चूत कोई ज्यादा कसी नहीं लग रही थी पर जिस अंदाज में वो अपनी चूत को अन्दर से भींच कर संकोचन कर रही थी मेरा लंड तो निहाल होता जा रहा था , सुधा (शहद) के नाम की तरह उसकी चूत भी बिलकुल शहद की कटोरी ही तो थी। सुधा ने अब मेरी कमर के दोनों ओर अपनी टाँगे कस कर लपेट ली। मैं जोर जोर से धक्के लगाने लगा।

कोई १० मिनट की धमाकेदार चुदाई के बाद मैंने महसूस किया कि उसकी चूत तो बहुत गीली हो गई है और लंड बहुत ही आराम से अन्दर बाहर हो रहा था। फच फच की आवाज आने लगी थी। उसे भी शायद इस बात का अंदाजा था।

मैंने कहा- भाभी क्या आपने कभी डॉग-कैट (कुत्ता-बिल्ली) आसन में चुदवाया है। तो उसने हैरानी से मेरी ओर देखा।

मैंने कहा- चलो इसका मजा लेते हैं।

आप भी सोच रहे होंगे, यह भला कौन सा आसन है। इस आसन में प्रेमिका को पलंग के एक छोर पर घुटनों के बल बैठाया जाता है एड़ियों के ऊपर नितम्ब रखकर। पंजे बेड के किनारे के थोड़े बाहर होते हैं। फिर एक तकिया उसकी गोद में रख कर उसका मुंह घुटनों की ओर नीचे किया जाता है। इस से उसका पेट दब जाता है जिस के कारण पीछे से चूत का मुंह तो खुल जाता है पर अन्दर से टाइट हो जाती है। प्रेमी पीछे फर्श पर खडा होकर कर अपना लंड चूत में डाल कर कमर पकड़ कर धक्का लगता है। यह आसन उन औरतों के लिए बहुत ही अच्छा होता है है जिनकी चूत फुद्दी बन चुकी हो। इस आसन की एक ही कमी है कि आदमी का पानी जल्दी निकल जाता है। मोटी गांड वाली औरतों के लिए ये आसन बहुत बढ़िया है। इस आसन में गांड मरवा कर तो वे मस्त ही हो जाती हैं। गांड मरवाते समय वो हिल नहीं सकती।

वो मेरे बताये अनुसार हो गई और मैंने अपने लंड पट थूक लगाया और पीछे आकर उसकी चूत में अपना लंड डालने लगा। अब तो चूत कमाल की टाइट हो गई थी। मैंने उसकी कमर पकड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दिए। सुधा के लिए तो नया तजुर्बा था। वो तो मस्त होकर अपने नितम्ब जोर जोर से ऊपर नीचे करने लगी। उसके फ़ुटबाल जैसे नितम्ब मेरे धक्कों से जोर जोर से हिलने लगे। उसकी गांड का छेद अब साफ़ दिख रहा था। कभी बंद होता कभी खुलता। मैंने अपनी अंगूठे पर थूक लगाया और गच्च से उसकी गांड में ठोक दिया। वो जोर से चिल्लाई “उईई माँ आ … ऑफ प्रेम क्या कर रहे हो? ओह … अभी नहीं अभी तो मुझे चूत में ही मजा आ रहा है।”

मैंने अपना अंगूठा बाहर निकाल लिया और उसके नितम्ब पर एक जोर की थपकी लगाई। उसके मुंह से अईई निकल गया और उसने भी अपने नितम्बों से पीछे धक्का लगाया। फिर मैंने उसकी कमर पकड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दिए। ५ मिनट में ही वो झड़ गई।

अब मैंने उसे फिर चित्त लिटा दिया और उसके नितम्बों के नीचे २ तकिये लगा दिए। उसने भी अपनी टाँगें उठा कर घुटनों को छाती से लगा लिया। अब उसकी चूत तो ऐसे लग रही थी जैसे उसकी दो अंगुलियाँ आपस में जुड़ी हों। अब मुझे गुरूजी की बात समझ लगी कि चूत दो अंगुल की क्यों कही जाती है। बीच की दरार तो एकदम बंद सी हो गई थी। चूत अब टाइट हो गई थी। मैंने अपना लंड फिर उसकी चूत में ठोक दिया और उसकी मोटी मोटी जांघें पकड़ कर धक्के लगाने चालू कर दिए।

५-७ मिनट की चुदाई के बाद उसने जब अपने पैर नीचे किये तो मेरा ध्यान उसके होंठों पर गया। उसके ऊपर वाले होंठ पर दाईं तरफ एक तिल बना हुआ था। ऐसी औरतें बहुत ही कामुक होती है और उन्हें गांड मरवाने का भी बड़ा शौक होता है। मैंने उसके होंठ अपने मुंह में ले लिए और चूसना शुरू कर दिया। वो ओह … आह्ह.। उईई कर रही थी। मैं एक हाथ से उसके गोल गोल संतरों को मसल रहा था और दूसरे हाथ की एक अंगुली से उसकी मस्त गांड का छेद टटोल रहा था। अचानक मेरी अंगुली से उसका छोटा सा नरम गीले छेद टकराया तो मैंने अपनी अंगुली की पोर उसकी गांड में डाल दी। उसने एक जोर की सीत्कार ली और मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। शायद उसका पानी फिर निकल गया था। अब उसकी चूत से फ़च फ़च की आवाज आनी शुरू हो गई थी। “ओईई माँ … मैं तो गई ….” कह कर वो निढाल सी पड़ गई और आँखें बंद कर के सुस्त पड़ गई।

अब मेरा ध्यान उसके मोटे मोटे उरोजों पर गया। कंधारी अनार जैसे मोटे मोटे दो रसकूप मेरे सामने तने खड़े थे। उसका एरोला कोई २ इंच तो जरूर होगा। चमन के अंगूरों जैसे छोटे छोटे चूचुक तो सिंदूरी रंग के गज़ब ही ढ़ा रहे थे। मैंने एक अंगूर मुंह में ले लिया और चूसने लगा। वो फिर सीत्कार करने लगी। उसकी चूत ने एक बार फिर संकोचन किया तो मैंने भी एक जोरदार धक्का लगा दिया। ओईई माँ आ ….। उसके मुंह से निकल पड़ा।

“आह्ह ….। और जोर से चोदो मुझे मैं बरसों की प्यासी हूँ। वो रमेश का बच्चा तो एक दम ढिल्लु प्रसाद है। आह … ऊईई … शाबाश और जोर से प्रेम आह … याया आ….ईई…। मैं तो मर गई …। ओईई …” लगता था वो एक बार फिर झड़ गई।

मैं भी कब तक ठहरता। मुझे भी लगने लगा कि अब रुकना मुश्किल होगा। मैंने कहा- शहद रानी मैं भी झड़ने वाला हूँ, तो वो बोली एक मिनट रुको। उसने मुझे परे धकेला और झट से डॉगी स्टाइल में हो गई और बोली “पीछे से डालो न प्लीज जल्दी करो !”

मैंने उसकी कमर पकड़ी और अपना फनफनाता लंड उसकी चूत में एक ही धक्के में पूरा ठोक दिया। धक्का इतना जोर का था कि उसकी घुटी घुटी सी एक चीख ही निकल गई। उसके गोल गोल उरोज नीचे पके आम की तरह झूलने लगे वो सीत्कार किये जा रहे थी। उसने अपना मुंह तकिये पर रख लिया और मेरे झटकों के साथ ताल मिलाने लगी। उसकी गोरी गोरी गांड का काला छेद खुल और बंद हो रहा था। वो प्यार से मेरे अण्डों को मसलती जा रही थी। मैंने एक अंतिम धक्का और लगाया और उसके साथ ही पिछले २५-३० मिनट से उबलता लावा फूट पड़ा। कोई आधा कटोरी वीर्य तो जरूर निकला होगा। मेरे वीर्य से उसकी चूत लबालब भर गई। अब वो धीरे धीरे पेट के बल लेट गई और मैं भी उसके ऊपर ही पसर गया। उसकी चूत का रस और मेरा वीर्य टपटप निकालता हुआ चद्दर को भिगोता चला गया।

कोई १० मिनट तक हम ऐसे ही पड़े रहे। फिर वो उठाकर बात कमरे में चली गई। मुझे साथ नहीं आने दिया। पता नहीं क्यों। साफ़ सफाई करके वो वापस बेड पर आ गई और मेरी गोद में सिर रखकर लेट गई। मैंने उसके बूब्स को मसलने चालू कर दिया।

मैंने पूछा, “क्यों शहद रानी ! कैसी लगी चुदाई ?”

“आह … बहुत दिनों के बाद ऐसा मज़ा आया है। मधु सच कहती है तुम एक नंबर के चुद्दकड़ हो। सारे कस बल निकाल देते हो। अगर कोई कुँवारी चूत तुम्हें मिल जाए तो तुम तो एक रात में ही उसका कचूमर निकाल दोगे !” और उसने मेरे सोये शेर को चूम लिया।

“क्यों रमेश भैय्या ऐसी चुदाई नहीं करते क्या ?”

“अरे छोड़ो उनकी बात वो तो महीने में एक दो बार भी कर लें तो ही गनीमत समझो !”

“पर आपकी चूत देख कर तो ऐसा लगता है जैसे उन्होंने आप की खूब रगड़ाई की है !”

“आरे बाबा वो शुरू शुरू में था, जब से उनका एक्सीडेंट हुआ है वो तो किसी काम के ही नहीं रहे। मैं तो तड़फती ही रह जाती हूँ। ”

“अब तड़फने की क्या जरुरत है ?”

“हाँ हाँ १५-२० दिन तो मजे ही मजे है। फिर ….” वो उदास सी हो गई।

“आप चिंता मत करें मैं १५-२० दिनों में ही आपकी सारी कमी दूर कर दूंगा और आपकी साइज़ भी ३८-२८-३६ से ३८-२८-३८ या ४० कर दूंगा ” मैंने उसके नितम्बों पर हाथ फेरते हुए कहा तो उसने मेरे लंड को मुंह में लेकर चूसना चालू कर दिया। मैंने कहा “ऐसे नहीं मैं चित्त लेट जाता हूँ आप मेरे पैरों की ओर मुंह करके अपनी टाँगे मेरे बगल में कर लो !”

अब मैं चित्त लेट गया और सुधा ने अपने पैर मेरे सिर के दोनों ओर करके अपनी चूत ठीक मेरे मुंह से सटा दी। उसकी फूली हुई चूत की दरार कोई ४ इंच से कम तो नहीं थी। उसकी चूत तो किसी बड़े से आम की रस में डूबी हुई गुठली सी लग रही थी। और टींट तो किसमिस के दाने जितना बड़ा बिलकुल सुर्ख लाल अनार के दाने की तरह। बाहरी होंठ संतरे की फांकों की तरह मोटे मोटे। अन्दर के होंठ देसी मुर्गे की लटकती हुई कलगी की तरह कोई २ इंच लम्बे तो जरूर होंगे। साले रमेश ने इनको चूस चूस कर इस चूत का भोसड़ा ही बना कर रख दिया था। और अब किसी लायक नहीं रहा तो मुझे चोदने को मिली है। हाय जब ये कुंवारी थी तो कैसी मस्त होगी साला रमेश तो निहाल ही हो गया होगा।

सच पूछो तो उसकी चुदी हुई चूत चोद कर मुझे कोई ज्यादा मजा नहीं आया था बस पानी निकालने वाली बात थी। पर उसके नितम्बों और गांड के छेद को देखकर तो मैं अपने होश ही खो बैठा। एक चवन्नी के सिक्के से थोड़ा सा बड़ा काला छेद। एक दम टाइट। बाहर कोई काला घेरा नहीं। आप को पता होगा गांड मरवाने वाली औरतों की गांड के छेड़ के चारों ओर एक गोल काला घेरा सा बन जाता है पर शहद रानी की कोरी गांड देखकर मुझे हैरानी हुई। क्या वाकई ये अभी तक कोरी ही है। मैं तो यह सोच कर ही रोमांच से भर गया। वो मेरा लंड चूसे जा रही थी। अचानक उसकी आवाज मेरे कानों में पड़ी,“अरे लण्डोईजी क्या हुआ ! तुम भी तो अपना कल का व्रत तोड़ो ना ?” उसका मतलब चूत की चुसाई से था।

“आन … हाँ “ मैं तो उसकी गांड का कुंवारा छेद देखकर सब कुछ भूल सा गया था। मैंने उसकी चूत पर अपनी जीभ फिराई तो वो सीत्कार करने लगी और मेरा लंड फिर चूसने लगी। मैंने भी उसकी चूत को पहले चाटा फिर अपनी जीभ की नोक उसकी चूत के छेद में डाल दी। वाओ … अन्दर से पके तरबूज की गिरी जैसी सुर्ख लाल चूत का अन्दर का हिस्सा बहुत ही मुलायम और मक्खन सा था। फिर मैंने उसके किसमिस के दाने को चूसा और फिर उसके अन्दर की फांकों को चूसना शुरु कर दिया। अभी मुझे कोई २ मिनट भी नहीं हुए थे कि सुधा एक बार और झड़ गई और कोई २-३ चमच शहद से मेरा मुंह भर गया जिसे मैं गटक गया। उसकी गांड का छेद अब खुल और बंद होने लगा था। उसमे से खुशबूदार क्रीम जैसी महक से मेरा स्नायु तंत्र भर उठा। मैंने अपनी जीभ की नोक उस पर जैसे ही टिकाई उसने एक जोर की किलकारी मारी और धड़ाम से साइड में गिर पड़ी। उसकी आँखें बंद थी। उसकी साँसे तेज चल रही थी।

“क्या हुआ मेरी शहद रानी ?”

वो बिना कुछ बोले उछल कर मेरे ऊपर बैठ गई और अपने होंठ मेरे होंठों पर लगा दिए। उसकी चूत ठीक मेरे लंड के ऊपर थी। मैं अभी अपना लंड उसकी चूत में डालने की सोच ही रहा था कि वो कुछ ऊपर उठी और मेरे लंड को पकड़ कर अपनी गांड के छेद पर लगा दिया और नीचे की ओर सरकने लगी। मुझे लगा कि मेरा लंड थोड़ा सा टेढ़ा हो रहा है। एक बार तो लगा कि वो फिसल ही जाएगा। पर सुधा ने एक हाथ से इसे कस कर पकड़ लिया और नीचे की ओर जोर लगाया। वह जोर लगाते हुए नीचे बैठ गई। मेरा आधा लंड उसकी नरम नाजुक कोरी गांड में धंस गया। उसके मुंह से एक हल्की सी चीख निकल गई। वो थरथर कांपने सी लगी उसकी आँखों से आंसू निकल आये।

मेरा आधा लंड उसकी गांड में फंसा था। २-३ मिनट के बाद जब उसका दर्द कुछ कम हुआ तो उसने अपनी गांड को कुछ सिकोड़ा। मुझे लगा जैसे किसी में मेरे लंड को ऐसे दबोच लिया है जैसे कोई बिल्ली किसी कबूतर की गर्दन पकड़ कर भींच देती है। मुझे लगा जैसे मेरे लंड का सुपाड़ा और लंड के आगे का भाग फूल गया है। मैंने उसे थोड़ा सा बाहर निकलना चाहा पर वो तो जैसे फंस ही गया था।

गांड रानी की यही तो महिमा है। चूत में लंड आसानी से अन्दर बाहर आ जा सकता है पर अगर गांड में लंड एक बार जाने के बाद उसे गांड द्बारा कुतिया की तरह कस लिया जाए तो फिर सुपाड़ा फूल जाता है और फिर जब तक लंड पानी नहीं छोड़ देता वो बाहर नहीं निकल सकता।

अब हालत यह थी कि मैं धक्के तो लगा सकता था पर पूरा लंड बाहर नहीं निकाल सकता था। आधे लंड को ही बाहर निकाला जा सकता था। सुधा ने नीचे की ओर एक धक्का और लगाया और मेरा बाकी का लंड भी उसकी गांड में समां गया। वो धीरे धीरे धक्का लगा रही थी और सीत्कार भी कर रही थी। “ओह … उई … अहह। या … ओईईई … माँ ….”

उसकी कोरी नाजुक मखमली गांड का अहसास मुझे मस्त किये जा रहा था। कई दिनों के बाद ऐसी गांड मिली थी। ऐसी गांड तो मुझे कालेज में पढ़ने वाली सिमरन की भी नहीं लगी थी और न ही निशा (मधु की कजिन) की। इतनी मस्त गांड साला रमेश चूतिया कैसे नहीं मारता मुझे ताज्जुब है।

मुझे धक्के लगाने में कुछ परेशानी हो रही थी। मैंने सुधा से कहा “शहद रानी ऐसे मजा नहीं आएगा। तुम डॉगी स्टाइल में हो जाओ तो कुछ बात बने। ”

पर बिना लंड बाहर निकाले यह संभव नहीं था। और लंड तो ऐसे फंसा हुआ था जैसे किसी कुतिया ने लंड अन्दर दबोच रखा था। अगर मैं जोर लगा कर अपने लंड को बाहर निकालने की कोशिश करता तो उसकी गांड की नरम झिल्ली और छल्ला दोनों बाहर आ जाते और हो सकता है वो फट ही जाती।

उसने धीरे से अपनी एक टांग उठाई और मेरे पैरों की ओर घूम गई। अब वो मेरे पैरों के बीच में उकडू होकर बैठी थी। मेरा पूरा लंड उसकी गांड में फंसा था। अब मैंने उसे अपने ऊपर लेटा सा लिया और फिर एक कलाबाजी खाई और वो नीचे और मैं ऊपर आ गया। फिर उसने अपने घुटने मोड़ने शुरू किये और मैं बड़ी मुश्किल से खड़ा हो पाया। अब हम डॉगी स्टाइल में हो गए थे।

अब तो हम दोनों ही सातवें आसमान पर थे। मैंने धीरे धीरे उसकी गांड मारनी चालू कर दी। आह …। असली मजा तो अब आ रहा था। मेरा आधा लंड बाहर निकालता और फिर गच्च से उसकी गांड में चला जाता। मुझे लगा जैसे अन्दर कोई रसदार चिकनाई भरी पड़ी है। जब मैंने उससे पूछा तो उसने बताया कि वो थोड़ी देर पहले जब अपनी चूत साफ़ कर रही थी तभी उसने गांड मरवाने का भी सोच लिया था। और क्रीम की आधी ट्यूब उसने अपनी गांड में निचोड़ ली थी। अब मेरी समझ में आया कि इतनी आसानी से मेरा लंड कैसे उसकी कोरी गांड में घुस गया था। पता नहीं साली ने कहाँ से ट्रेनिंग ली है।

“भाभी यह बाते आप मधु को क्यों नहीं समझाती !”

“मुझे पता है वो तुम्हें गांड नहीं मारने देती और तुम उससे नाराज रहते हो !”

“आपको कैसे पता ?”

“मधु ने मुझे सब बता दिया है। पर तुम फिक्र मत करो। बच्चा होने के बाद जब चूत फुद्दी बन जाती है तब पति को चूत में ज्यादा मजा नहीं आता तब उसकी पड़ोसन ही काम आती है नहीं तो मर्द कहीं और दूसरी जगह मुंह मारना चालू कर देता है। इसी लिए वो गांड नहीं मारने दे रही थी। अब तुम्हारा रास्ता साफ़ हो गया है। बस एक महीने के बाद उसकी कुंवारी गांड के साथ सुहागरात मना लेना !” सुधा हंसते हुए बोली।

“साली मधु की बच्ची !” मेरे मुंह से धीरे से निकला, पता नहीं सुधा ने सुना या नहीं वो तो मेरे धक्कों के साथ ताल मिलाने में ही मस्त थी। उसकी गांड का छेद अब छोटी बच्ची की हाथ की चूड़ी जितना तो हो ही गया था। बिलकुल लाल पतला सा रिंग। जब लंड अन्दर जाता तो वो रिंग भी अन्दर चला जाता और जब मेरा लंड बाहर की ओर आता तो लाल लाल घेरा बाहर साफ़ नजर आता।

मैं तो मस्ती के सागर में गोते ही लगा रहा था। सुधा भी मस्त हिरानी की तरह आह … उछ … उईई …। मा …। किये जा रही थी। उसकी बरसों की प्यास आज बुझी थी। उसने बताया था कि रमेश ने कभी उसकी गांड नहीं मारी अब तक अनछुई और कुंवारी थी। बस कभी कभार अंगुल बाजी वो जरूर कराती रही है। मेरे मुंह से सहसा निकल गया “चूतिया है साला ! इतनी ख़ूबसूरत गांड मेरे लिए छोड़ दी !”

मैंने अपनी एक अंगुली उसकी चूत के छेद में डाल दी। वो तो इस समय रस की कुप्पी बनी हुई थी। मैंने अपनी अंगुली अन्दर बाहर करनी शुरू कर दी। फ़च्छ … फ़च्छ. की आवाज गूंजने लगी। एक हाथ से मैं उसके स्तन भी मसल रहा था। उसको तो तिहरा मज़ा मिल रहा था वो कितनी देर ठहर पाती। ऊईई … माँ आ. करती हुई एक बार झड़ गई और मेरी अंगुली मीठे गरम शहद से भर गई मैंने उसे चाट लिया। सुधा ने एक बार जोर से अपनी गांड सिकोड़ी तो मुझे लगा मेरा भी निकलने वाला है।

मैंने सुधा से कहा- मैं भी जाने वाला हूँ !

तो वो बोली “मैं तो पानी चूत में ही लेना चाहती थी पर अब ये बाहर तो निकलेगा नहीं तो अन्दर ही निकाल दो पर ४-५ धक्के जोर से लगाओ !”

मुझे भला क्या ऐतराज हो सकता था। मैंने उसकी कमर कस कर पकड़ी और जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए, “ले मेरी सुधा रानी ले. और ले … और ले …” मुझे लगा कि मेरी पिचकारी छूटने ही वाली है।

वो तो मस्त हुई बस ओह.। आह्ह। उईई। या ….हईई … ओईई … कर रही थी। मेरे चीकू उसकी चूत की फांकों से टकरा रहे थे। उसने एक हाथ से मेरे चीकू (अण्डों) कस कर पकड़ लिए। ये तो कमाल ही हो गया। मुझे लगता था कि मेरा निकलने वाला है पर अब तो मुझे लगा कि जैसे किसी ने उस सैलाब (बाढ़) को थोड़ी देर के लिए जैसे रोक सा दिया है। मैंने फिर धक्के लगाने शुरू कर दिए। १०-१५ धक्कों के बाद उसने जैसे ही मेरे अण्डों को छोड़ा मेरे लंड ने तो जैसे फुहारे ही छोड़ दी। उसकी गांड लबालब मेरे गर्म गाढ़े वीर्य से भर गई। वो धीरे धीरे नीचे होने लगी तो मैं भी उसके ऊपर ही पड़ गया। हम इसी अवस्था में कोई १० मिनट तक लेटे रहे। उसका गुदाज़ बदन तो कमाल का था। फिर मेरा पप्पू धीरे धीरे बाहर निकलने लगा। एक पुच की हलकी सी आवाज के साथ पप्पू पास हो गया। सुधा की गांड का छेद अब भी ५ रुपये के सिक्के जितना खुला रह गया था उसमे से मेरा वीर्य बह कर बाहर आ रहा था। मैंने एक अंगुली उसमें डाली और उस रस में डुबो कर सुधा के मुंह में डाल दी। उसने चटकारा लेकर उसे चाट लिया।

वो जब उठकर बैठी तो मैंने पूछा “भाभी एक बात समझ नहीं आई आप गांड के बजाये चूत में पानी क्यों लेना चाहती थी ?”

“अरे मेरे भोले राजा ! क्या मुझे एक सुन्दर सा बेटा नहीं चाहिए ? मैं रमेश के भरोसे कब तक बैठी रहूंगी” सुधा ने मेरी ओर आँख मारते हुए कहा और जोर से फिर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया।

इतने में मोबाइल पर मैसेज का सिग्नल आया। बधाई हो बेटा हुआ है। मैंने एक बार फिर से सुधा की चुदाई कर दी। मैं तो गांड मारना चाहता था पर सुधा ने कहा- नहीं पहले चूत में अपना डालो तो मुझे चूत मार कर ही संतोष करना पड़ा।

सुबह हॉस्पिटल जाने से पहले एक बार गांड भी मार ही ली, भले ही पानी गांड में नहीं चूत में निकाला था। यह सिलसिला तो अब रोज ही चलने वाला था जब तक उसकी गांड के सुनहरे छेद के चारों ओर गोल कला घेरा नहीं बन जाएगा तब तक।

बस आज इतना ही…..

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